Wednesday, September 16, 2009

कितना सुहाना दिन था
उससे भी सुहानी रात 
            न कोई सपने न कोई आवाज़
            बस मैं था और थी मेरी तन्हाई ||
जब उठा सुबह तो मानो
दुनिया ही हो कोई अलग-सी
            अलग-से-विचार   
            अलग-सी-कल्पनाएँ ||
न जाने क्या छिपा है
इस दिन के आँगन में
           जो भी होगा अच्छा ही होगा 
           दिन के उजाले में ||
अब तो हर सांस कुछ कहती है
जिंदगी के पंख लगा उड़ जाने को कहती है ||


-विनय 'विनोद' द्वारा रचित

3 comments:

  1. आपको बधाई हो आपका ब्लॉग जगत में स्वागत हैं निरन्तरता बनाये रखें.

    ReplyDelete
  2. @ Amit K. सागर जी
    आप के सराहनापूर्ण स्वागत के लिए बहुत बहुत धन्यवाद्
    आगे भी आपकी टिप्पणियों की अपेक्षा रखता हूँ |

    ReplyDelete
  3. @ A Desk Of an Artisan
    स्वागतीय बधाई के लिए अनेकानेक धन्यवाद्
    मैं पूरा प्रयास करूंगा कि निरंतरता बनाये रखूँ
    आपके सुझावों का हमेशा स्वागत रहेगा |

    ReplyDelete