बढ़ती जनसँख्या "भारत" जैसे एक विशाल एवं विकासशील देश के लिए एक ज्वलंत समस्या बन कर उभरी है,
इससे हर व्यक्ति जीवन में किसी न किसी रूप में प्रभावित हुआ है | इसके बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठए
गए हैं -न तो व्यक्तिगत स्तर पर और नाही संस्थागत स्तर पर |
हमारे एक प्रिय मित्र ने इस विषय पर हमारा ध्यान खींचा और इसका परिणाम है ये रचना | एक व्यक्ति भी इस
रचना से अगर प्रभावित होता है तो ये इसकी सफलता होगी| और इस सफलता पर एक मुहर लग जाएगी अगर
एक भी ठोस कदम इस समस्या को समाप्त करने के प्रति उठे |
अपनी टिप्पणियों से मुझे अवश्य अनुगृहित करें ------
इससे हर व्यक्ति जीवन में किसी न किसी रूप में प्रभावित हुआ है | इसके बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठए
गए हैं -न तो व्यक्तिगत स्तर पर और नाही संस्थागत स्तर पर |
हमारे एक प्रिय मित्र ने इस विषय पर हमारा ध्यान खींचा और इसका परिणाम है ये रचना | एक व्यक्ति भी इस
रचना से अगर प्रभावित होता है तो ये इसकी सफलता होगी| और इस सफलता पर एक मुहर लग जाएगी अगर
एक भी ठोस कदम इस समस्या को समाप्त करने के प्रति उठे |
अपनी टिप्पणियों से मुझे अवश्य अनुगृहित करें ------
नित बढ़ती आबादी का बोझ
कब तक उठा पाएगी धरती
कम करो कम करो
कुछ कम तो करो ये आबादी ||
चाहे जिस ओर चले जाओ
चाहे जिस दिशा निकल जाओ
बढ़ती आबादी का ये मंजर
चला रहा पैना खंजर
कैसे भी करो कैसे भी करो
कुछ कम तो करो ये आबादी ||
सड़को पर तुम जो निकल जाओ
दुपहिया चौपहिया की आबादी
धू धू करती इनका धुंआ
खेले जन जन के जीवन से जुआ
हमें बैर नहीं इन वाहन से
पर ये जुआ तो खुद से ना खेलो
कहीं भी करो कहीं भी करो
कुछ कम तो करो ये आबादी ||
हर पल ही उलझता है मानव
जीवन की लिए नित उलझने नव
रोटी कपड़ा औ' मकान
बनके उभरी जन-जरूरतें महान
पर कब तक बोझ उठा पाएगी धरा
थक जाएगी करने को पूरा
निरंतर बढ़ती ये अभिलाषा
क्यूँ न करो तुम क्यूँ न करो
कुछ कम तो करो ये आबादी ||
चहुँ ओर मचा है हाहाकार
छाया ये कैसा अन्धकार
मानव मानव का दुश्मन है
पड़ा संसाधनों का जैसे अकाल है
आया मानो कोई भूचाल है
कब तक उठा पाएगी धरती
कम करो कम करो
कुछ कम तो करो ये आबादी ||
चाहे जिस ओर चले जाओ
चाहे जिस दिशा निकल जाओ
बढ़ती आबादी का ये मंजर
चला रहा पैना खंजर
कैसे भी करो कैसे भी करो
कुछ कम तो करो ये आबादी ||
सड़को पर तुम जो निकल जाओ
दुपहिया चौपहिया की आबादी
धू धू करती इनका धुंआ
खेले जन जन के जीवन से जुआ
हमें बैर नहीं इन वाहन से
पर ये जुआ तो खुद से ना खेलो
कहीं भी करो कहीं भी करो
कुछ कम तो करो ये आबादी ||
हर पल ही उलझता है मानव
जीवन की लिए नित उलझने नव
रोटी कपड़ा औ' मकान
बनके उभरी जन-जरूरतें महान
पर कब तक बोझ उठा पाएगी धरा
थक जाएगी करने को पूरा
निरंतर बढ़ती ये अभिलाषा
क्यूँ न करो तुम क्यूँ न करो
कुछ कम तो करो ये आबादी ||
चहुँ ओर मचा है हाहाकार
छाया ये कैसा अन्धकार
मानव मानव का दुश्मन है
पड़ा संसाधनों का जैसे अकाल है
आया मानो कोई भूचाल है
आई कैसी ये घनघोर बिपति
मानव न बन जाये विलुप्त प्रजाति
अरे अब तो करो अब तो करो
कुछ कम तो करो ये आबादी ||
ये मुद्दा नहीं किसी देश का
समस्या है ये समूचे विश्व का
जन जन में जगाओ चेतना
जागृत करो ये संवेदना
लेने होंगे कुछ ठोस कदम
जिससे भागे ये विपदा परम
सब मिल के करो सब मिल के करो
कुछ कम तो करो ये आबादी ||
न गरीब की ना अमीर की
न गावों की ना शहरों की
न शिक्षित की ना अशिक्षित की
समस्या है ये हर इक की
आगे आओ कुछ निर्णय लो
दृढ़ निश्चय का तुम परिचय दो
देर न करो देर न करो
कुछ कम तो करो ये आबादी ||
पंचायत हो या विश्व मंच
"डी.एम." हो या फिर हो "पी.एम."
सबको आवाज़ उठानी होगी
कुछ नए कानून बनाने होंगे
ये एक समस्या जननी है
कई अन्य जघन्य समस्याओं की
सब एकजुट होकर आगे आओ
इसे बढ़ने मत दो बढ़ने मत दो
कुछ कम तो करो ये आबादी ||
सबको आवाज़ उठानी होगी
कुछ नए कानून बनाने होंगे
ये एक समस्या जननी है
कई अन्य जघन्य समस्याओं की
सब एकजुट होकर आगे आओ
इसे बढ़ने मत दो बढ़ने मत दो
कुछ कम तो करो ये आबादी ||
-विनय 'विनोद' द्वारा रचित
aabaadi ka visfot duniya ko dubo kar hi dam lega ..... swagat hai aapke
ReplyDeletenarayan narayan
ReplyDeleteआप लोगो के स्वागत भरे टिप्पणियों के लिए
ReplyDeleteकोटि कोटि धन्यवाद् |
आप लोगों के कटाक्ष और सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी |
बहुत ही सुंदर,
ReplyDeletehttp://sanjaybhaskar.blogspot.com